शिखा का महत्व
अगर जीवन मे सुखी ओर सफल रहना है, तो शिखा ( चोटी ) रखनी ही होगी ।
आज 99% घरों में जाकर आप पूछ लेवें, क्या वह सुखी है, प्रत्येक घर परिवार में कोई न कौई समश्या तो मिलती ही है । पुराने समय मे दुःख ओर क्लेश भारतीयों के नही था, दुःख क्लेश मात्र मल्लेछो के हुआ करता था, आजकल भारतीय स्वयं ही मल्लेछ आचरण में जीवन व्यतीत करने लगे, तो जीवन मे कष्ठ आना ही है । हमारे पूर्वज उन्हें मल्लेछ या राक्षस मानते थे, जिनके शिखा तथा जनेऊ नही होती थी ।
#शिखा ( चोटी ) रखने और उसमें गांठ बांधने की प्रथा क्यों ?
हिंदू धर्म के साथ शिखा का अटूट संबंध होने के कारण चोटी रखने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है । शिखा का महत्त्व भारतीय संस्कृति में अंकुश के समान है । यह हमारे ऊपर आदर्श और सिद्धांतों का अंकुश है । इससे मस्तिष्क में पवित्र भाव उत्पन्न होते हैं । हमारे लघु और दीर्घ मस्तिष्कों को जोड़ने वाले केंद्र को ' अधिपति ' मर्मस्थल कहते हैं , जो मस्तिष्क का हृदय कहलाता है । यहीं पर ब्रह्मरंध , द्विदलीय आज्ञाचक्र और पीनियल ग्लैंड से संपर्क जोड़ने वाली नाड़ियां आकर मिलती हैं , जो बच्चे की चिंतन शक्ति का विकास करती हैं । इस स्थान पर जो बालों का भंवर होता है , उसकी जड़ें उन चेतना केंद्रों तक चली गई हैं , जिनकी बदौलत हम बुद्धिमान् व मनस्वी बनते हैं । ऐसे मर्मस्थल की पहचान और सुरक्षा के लिए ही हमारे ऋषियों ने उस स्थान पर चोटी ( शिखा ) रखने का विधान बनाया है ।
#कात्यायनस्मृति में लिखा है
सदोपवीतिना भाव्यं सदा बद्धशिखेन च ।
विशिखो ब्युपवीतश्च यत्करोति न तत्कृतम् ॥
कात्यायनस्मृति 1/4
अर्थात् बिना शिखा के जो भी यज्ञ , दान , तप , व्रत आदि शुभ कर्म किए जाते हैं , वे सब निष्फल हो जाते हैं ।
यहां तक कि बिना शिखा के किए गए पुण्य कर्म भी राक्षस कर्म हो जाते हैं ।।
विना यच्छिखया कर्म विना यज्ञोपवीतकम् ।
राक्षसं तद्रि विज्ञेयं समस्ता निष्फला क्रियाः ॥
-महर्षि वेदव्यास 40
इसलिए मनुस्मृति में आज्ञा दी गई है ;-
स्नाने दाने जपे होमे सन्च्यायां देवतार्चने । शिखाग्रन्थिं सदा कुर्यादित्येततन्मनुरब्रवीत् ॥
अर्थात् स्नान , दान , जप , होम , संध्या और देव पूजन के समय शिखा में ग्रंथि ( चोटी में गांठ ) अवश्य लगानी चाहिए । पूजा - पाठ के समय शिखा में गांठ लगाकर रखने से मस्तिष्क में संकलित ऊर्जा तरंगें बाहर नहीं निकल पाती हैं । इनके अंतर्मुखी हो जाने से मानसिक शक्तियों का पोषण , सद्बुद्धि , सद्विचार आदि की प्राप्ति , वासना की कमी , आत्मशक्ति में बढ़ोतरी , शारीरिक शक्ति का संचार , अवसाद से बचाव , अनिष्टकर प्रभावों से रक्षा , सुरक्षित नेत्र ज्योति , कार्यों में सफलता तथा सद्गति जैसे लाभ भी मिलते हैं ।
श्रीमन्ननारायणनारायणहरिहरि ।। बोलो नारायण नारायण हरि हरि ।।🚩🚩🚩
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